Saturday, September 17, 2011

स्व. श्री श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस'


Shri Shreekrishna Joshi
'Nakshe Navees'

Late Shri Shreekrishna Joshiborn in a renowned Jyotish family of Shri Kanhaiyalal Joshi of Ujjain. Shreekrishna Joshi a matriculate of early 20th century, being a Dashora Brahmin was closely associated with Mandsaur Malwa region. His ancestors were from Junagadh, Gujrat who later migrated to Mandsaur as priest of the Mandsaur Empire and the region. His father was a well known Jyotish and honored number of times for his knowledge and predictions, given in favor of many renowned people and to Nawab of Jaora. Shri Joshi was a Planchet operator and as per the evidences from the living people, nobody has seen earlier or after him, to operate the unique style of operating the Planchet. Shri Joshi were two brothers i.e. himself and Late Shri Srinivas Joshi {Srinivas Joshi was Father of Padmashri Shri Sharad Joshi, A legendry hindi poet and Shri Romesh Joshi, A famous hindi columnist}
Shreekrishna Joshi  died of natural death (10th August 1966), while he was staying with his eldest son Shri Suryanarayan Joshi.

** स्व. श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस'- एक परिचय
वर्ष १८९०-९५ के बीच 'धनतेरस' पर जन्म लिए बालक श्रीकृष्ण जन्म से ही कला, साहित्य, देशोत्थान, आज़ादी इत्यादि विचारों से प्रेरित रहे. गरीब ब्राम्हण श्री कन्हैयालाल जोशी 'ज्योतिष' के घर तीन बेटियों के बाद जन्म लेने के कारण घर में उत्साह का वातावरण रहता था एवं श्रीकृष्ण का अत्यधिक लाड प्यार से लालन पालन हुआ. चूंकि पिता ज्योतिष विद्या में पारंगत थे अतः बचपन से ही श्रीकृष्ण को इस विद्या से रूचि तो थी ही, वे उस पर प्रयोग भी करने लगे. यहाँ इस बात का उल्लेख करना भी प्रासंगिक होगा कि श्री कन्हैयालाल जोशी को उनकी ज्योतिष विद्या और उसके आधार पर किये गये भविष्य कथन के लिये तत्कालीन जावरा नवाब के द्वारा पुरुस्कृत करते हुवे वन्श्वन्शानुगत नेम्नुक प्रदान की गई|

अपने वंश के सदस्यों द्वारा लालचवश श्री कन्हैयालाल ज्योतिष को परिवार से तिरस्कृत कर दिया गया और वे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपनी विद्या के आधार पर जीविका चलाते रहे. बचपन से ही तहसील की कार्यवाहियों में तल्लीन रहने के कारण कानूनी जानकारियाँ पढाई के दौरान ही अर्जित कर ली एवं श्रीकृष्ण ने माधव कॉलेज उज्जैन से मेट्रिक पास कर लेने के बाद तत्कालीन ग्वालियर राजवंश के अंतर्गत उजैन में लोक निर्माण विभाग में नक़्शे नवीस (ड्राफ्ट्समेन) के पद पर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया| असमय पिता की मृत्यु के कारण जल्द ही परिवार की जिम्मेदारी भी संभालनी पडी| नक़्शे नवीस के पद पर रहते हुवे श्रीकृष्ण जोशी की सबसे बड़ी उपलब्धि इतिहास में स्थापित होकर रह गई जो कि उज्जैन शहर में आज के छत्री चौक के नाम से जाना जाता है. हुवा यों कि उज्जैन के गोपाल मंदिर चौक पर समय असमय होने वाली यातायात की परेशानी से निजात पाने के लिये कुछ अंग्रेज इंजिनीयर काफी समय से परेशान थे परन्तु उचित निराकरण नहीं हो पा रहा था. श्रीकृष्ण जोशी ने अनुमति प्राप्त कर के उस पर कार्य किया एवं चौक के चारों तरफ बने हुवे मकानों को पीछे न हटाते हुवे भूतल पर पिलर्स के सहारे १० फीट पीछे कर दिया जिससे पदयात्रियों के लिये काफी सुविधा हो गई एवं सड़क पर वाहनों के लिये पर्याप्त जगह भी बन गई | कालांतर में उक्त प्रणाली को ग्वालियर के बाड़ा चौक व् वर्तमान उज्जैन के फ्रीगंज में भी क्रियान्वित किया गया |
उज्जैन शहर के कार्तिक चौक , खिरनी की गली में किराए के मकान में रहते हुवे श्रीकृष्ण जोशी अपने विद्यार्थी जीवन से ही कविता लेखन की ओर आकर्षित थे एवं उस समय उन्होंने कॉलेज में होने वाले सभी कार्यक्रमों में  अपनी कविताओं के ओज से समा बांधा. उज्जैन व् ग्वालियर में आयोजित राजकीय समारोहों के सार्वजनिक कवि सम्मलेन में भी उनके द्वारा कवितायें पढी व् प्रस्तुत की जाती रही. हालांकि उन्हें मिले पारितोषिकों का विवरण उपलब्ध नहीं है परन्तु इन आयोजनों से मिलने वाली राशि से परिवार के संचालन में मदद मिलना यह दर्शाता है कि उन्होंने कई पारितोषिक राशियाँ भी प्राप्त हुईं. उपलब्ध संग्रह के अनुसार वर्ष १९१५ की उनकी कविता 'नव वर्ष', १९१६ में 'धैर्य-प्रशंसा' बहुत सराही गई. उसके बाद सतत लेखन कार्य देश के मौजूदा हालात, भ्रष्टाचार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों को प्रताड़ित करना, खादी, स्वदेश इत्यादि विषयों पर उनकी लेखनी ने विस्तृत अंकन किया  १९२७ से १९४५ तक उन्होंने अपनी रचनाओं से संग्रह तैयार कर दिया साथ ही वे उज्जैन में साप्ताहिक समाचार पत्र 'जाति जीवन'' एवं 'सत्यवृत महिमा' का सम्पादन करते रहे | इन पत्रिकाओं का सम्पादन हाथ से लिखकर डुप्लीकेटिंग मशीन पर छापने के बाद स्वयं वितरण करते थे |
'चक्कर में', 'ऐसे नरधीर ही नागरिक कहाते हैं', 'हो जाती संगठित जो यह विशाल जाति (देश)', 'जागिये', 'अन्धकार छाया है घोर', 'भारत सुत तुम वीर बनो', 'धर्मवीर की प्रतिभा', 'जीवन का पाठ', 'प्रताप की याद', 'बांके विरोधी', 'मणि झलके है आँखों में', 'वसंत विरह', 'वसंत स्वागत', 'होलिकोत्सव- नेक सलाह', कुसुम तुम क्यों कुम्भ्लाते हो', 'स्वदेश संगठन हित की आवश्यकता', 'आंसू', 'जलाओना', 'कर्म कुंडली',    'खादी महंगी है', 'त्याग है की पूर्ती', 'शिशिर की शीत में', अपटूडेट कोरे ग्रेजुएट', 'किसी से कभी न हारूंगा', 'में हूँ एक सिपाही', 'झूम रही है डाली', 'अज्ञात यौवना', 'रे खगेश', 'कलि कौतुक कलाप', 'रात की करामात', 'म्हारी डाबली खोवाणी', 'उज्जैन शहर है आला', 'माखन की डलियाँ', 'छुप छुप जाते हो', 'दिलदार दिल'*, 'जमुना के तट पर', 'खादी को जबते तजी', 'जीवन की प्रहेलिका- गद्य', 'मिट नहीं सकता- गीत', 'नैतिक विवेचना', 'नैतिक नयन', 'ठठं ठठं ठं ठठठं ठठं', 'विद्वसंगति', 'विद्या प्रशंसा' एवं कई अन्य आपके अप्रकाशित काव्य हैं एवं इसके अलावा 'सत्यवृत महिमा' स्वयं के द्वारा प्रकाशित खंड काव्य है|
स्व. श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस' की लगभग सभी रचनाएं अप्रकाशित हैं, परन्तु 'दिलदार दिल' का शायद किसी जगह प्रकाशन हो चुका था जो फिल्म श्री ४२० में दिल का हाल सुने दिल वाला, सीधी सी बात न मिर्च मसाला, कहके रहेगा कहने वाला, दिल का हाल सुने दिल वाला' गीत के रूप में गायक अबू मालिक द्वारा परिवर्तित रूप में गाया गया. *
श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस' प्रसिद्ध साहित्यकार एवं व्यंगकार 'पद्मश्री' स्व. श्री शरद जोशी के ताउजी थे| श्री शरद जोशी बचपन से ही अपने ताउजी  की काव्य एवं साहित्य के प्रति साधना में काफी रूचि रखते थे एवं उनके कार्यों और रचनाओं से प्रेरणा लेते हुवे    अपनी जीवन रेखा के रूप में अंगीकार किया |
स्व. श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस' की रचनाओं को  पढ़कर यह आभास होता है कि वे हिन्दी साहित्य के एक ऐसे सूर्य हैं जिसका आलोक सदैव हिन्दी जगत् को दैदीप्यमान करता रहेगा। **************************

No comments:

Post a Comment