Thursday, November 3, 2011

'सत्यवृत महिमा'- "SATYVRUT MAHIMA"

हमारे दादाजी, स्व. श्री सूर्यनारायणजी जोशी, स्व. श्री चंद्रनारायणजी जोशी व् स्व. श्री शेषनारायणजी जोशी के पिता, स्व. शरद जोशी 'कवि' एवं श्री रोमेश जोशी के ताउजी स्व. श्री श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस', जिनका जन्म स्व. श्री कन्हैयालालजी जोशी के घर, उज्जैन में हुआ, एक महान विचारक, चिन्तक, कवि एवं कर्मठ व्यक्तित्व के धनी थे .
अपने जीवनकाल में उन्होंने ग्वालियर राजवंश के उज्जैन शहर में नक़्शे नवीस के पद पर सफलता पूर्वक कार्य किया एवं यह भी कहा जाता है कि उज्जैन शहर का गोपाल मंदिर चौकवर्तमान में छतरी चौक, जहाँ खम्भों पर मकान बने हुए हैं और नीचे राहगीरों के लिए जगह  छूटी हुई है, इसकी योजना इनके द्वारा ही तैयार की गई थी. कालांतर में अपनी क्षमता दिखाने के बाद भी सिर झुकाकर आदेशों का पालन करना व् अधिकारियों की चाटुकारिता करना, जो उनके स्वभाव से परे था तथा अंग्रेज ओवरसीयर द्वारा उक्त उपलब्धी अपने द्वारा करना प्रदर्शित किया गया था और इसी कारणवश श्री श्रीकृष्ण जोशी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था.
तत्पश्चात आज़ादी की लड़ाई में वे एक संपादक के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करते रहे और इस कार्य हेतु उन्होंने एक स्वतंत्र एवं हस्तलिखित पत्रिका 'सत्यवृत महिमाका सम्पादन कार्य प्रारंभ किया. पत्रिका वे सीमित मात्रा में ही प्रकाशित कर पाते थे तथा सभी लेख वे स्वयं लिखते. कहीं से पुराने डुप्लिकेटिंग मशीन ले आये थे जिस पर छपाई का कार्य होता, पंचिंग करने के बाद स्वयं घर घर जाकर वितरित भी करते थे. यह आंशिक आय का साधन बनने के साथ आत्म संतोष भी प्रदान करता था. विभिन्न विषयों पर मंथन, चर्चा और जनसंपर्क उन्हें बड़ा रुचिकर लगता था और साथ ही इससे वे प्रेरणा भी लेते रहते थे.
 'सत्यवृत महिमा'- मुख पृष्ठ

'सत्यवृत महिमा'- प्रस्ताविका एवं अनुक्रमणिका पृष्ठ

इस पांडुलिपी के अलावा उनके द्वारा लिखी गई ४० से ऊपर कविताओं का संग्रह भी मौजूद है. उनकी कवितायें तत्कालीन जातिवाद, ब्राम्हणवाद, स्वदेशी, आजादी आन्दोलन, युवा पीढी को उत्साहित करना, सामाजिक कुरीतियाँ, व्यंग, समयानुकूल विषय से प्रेरित थी. कुछ कवितायें जैसे 'नैतिक विवेचना', 'आरोग्य दिनचर्या', 'कलि कौतुक कलाप', 'ऐसे नर ही नागरिक कहाते हैं', 'कर्म कुंडली' सुन्दर शब्दों में रचित हैं और आज के युग में भी पूरी तरह से संचरित की जा सकती हैं. 

कुछ कविताओं के अंश यहाँ प्रस्तुत हैं;


सुख संतत हो इस भारत  में
११.११.१९२९
|| त्रोटक छंद ||
जय जीवन अधार प्रभो, कमलापति नागर नाथ विभो |
हरिनाथ अनाथन के तुम हो, तुमरे सम कौन सहायक हो  ||
सिर टेक दियो पद पावन में, सुख संतत हो इस भारत में ||||
कतार उदार सहायक हो, सुखमूलक धर्म दिखावत हो |
सब दिव्य गुणादिक के घर हो, भवसागर के खेवट हो ||
कर तेज दया करके सब में, सुख संतत हो इस भारत में ||||
ठगियापन की मन टेक न हो, घटियापन की रूचि नेक न हो |
दुःख का दल दूर रहे दिल से, सुख की सुधिसाध चले हित से ||
शरणागत "कृष्ण" कहें मन में, सुख संतत हो इस भारत में ||||
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धैर्य प्रशंसा
८.१०.१९१६
धीरज के बल ते नर दुर्गम घोर विपति सहे दृढ़ता से,
धीरज को बल पाय गुणी कृतकार्य बने चमके सविता से |
धीरज काल को अनुकूल बने न अधीर सुधीर कहावे,
धीरज ते न कहा कहु होत फले सब काज सुधारस पावे ||
धीर धरी सुर सिन्धु मथ्यो निकसी कमला सबके मन भाई,
पै जब ही प्रकट्यो विष भीषण धीरज के बल पीर मिटाई|
अंत सुधा जब हाथ लग्यो, मन मोद भयो फल उत्तम पायो,
धीर धरो न अधीर बनो बिन धीर न काहू सुधारस पायो ||
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ॐ जय शिव ॐकारा
८.८.१९५५
ॐ जय शिव ॐकारा, हर शिव ॐकारा,
निजजनपालन तत्पर, मस्तक जलधारा|
ॐ जय शिव ॐकारा
शीर्षे शुभ शशि शोभित, गिरिजा सहचारी,
गिरी गौरव रूचि सारा, पावन पथ धारी |
ॐ जय शिव ॐकारा
योगयुक्ति रुचिधारी, वंद्यवरद धोरी,
जटा मुकुट  सह मस्तक, भुजंग कंठ धारी |
ॐ जय शिव ॐकारा ||
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