* चक्कर में *
९.९.१९२७
(दोहा)
चक्कर में आये हुवे
भारत के परिवार,
गहन गर्त में गिर
रहे करि अनीति पर प्यार ||
(मनहरण)
देश के सुधारिवे
को प्रेम कीजे सारे धाय,
अपनी रसीली बोली
बोरदीजे शक्कर में |
वीर अधिकार पाय
धारि लीजे बंधुभाव,
सबको सहाय दीजे
चाहे हल बक्खर में | |
पौरुष प्रचंड धार
साहस से शत्रुमार,
अपनी महानता बिसारी
दीजे मक्कर में |
अपस में फूट के
तनावे न तानो 'कृष्ण',
भाई! भारतीयता को
फांसिये न चक्कर में | |
धर्म पड़े चक्कर
में तो रूढी को मान घटे,
कर्म पड़े चक्कर
में तो पुण्य गिर जावेगो |
भाग्य होय चक्कर
में तो निर्धनता निश्चय होय,
रोग पड़े चक्कर में
तो मूर्ख वैद्य आवेगो | |
देश पड़े चक्कर में
तो फूट लता फ़ैल जाय,
प्रेम पड़े चक्कर
में तो संशयी बनावेगो |
एते सब चक्कर ते
'कृष्ण' है उबारी को
बुद्धि पड़े चक्कर
में तो गुरु ही जगावेगो ||
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