धर्मवीर की प्रतिभा
- दोहा -
धर्मवीर सुनिये सुजन कान खोल कर बात
धर्म समुन्नति के लिए चहिये भली जमात.
-छप्पय छंद-
शुभविचारयुत भली बहुश्रुत पर दुःख हरता,
हो कुशाग्र सद्बुद्धि चाल में रहे
प्रमुखता.
अभय अशंकित सबल नीतियुत होय सुजनता,
तेजस्वी स्वाधीन प्रफुल्लित
सत्यनियन्त्रा.
प्रणपरिपालक हो रहे दया दीनता होहिये,
हमें धर्म हित जागती जीती जनता
चाहिये.=१=
जिसमें होवे श्रेष्ठ सुमति की आशा ममता,
भीतर बाहर विमल सुखद तन तेज झलकता.
सहधर्मी से प्रेमसुमन की माल पहनता,
जिसकी सेवा किये हिये में नेह उमड़ता.
हमें चाहिये बलवती जनता दृढमति की सदा
एक एक सज्जन हरे सहधर्मी जिनकी व्यथा.
=२=
सारे मिलकर एक हो करिये सभा सुधार
बिगड़े को सुधराइये घर घर यही विचार
घर घर यही विचार धार मंडल कर लीजे
मुखियन को अपनाय सभा प्रतिनिधी की कीजे
कहें "कृष्ण" हीओ एक रूप
मुकति के प्यारे
कर दो बल संचार धर्म में मिलकर सारे||
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