जीवन का पाठ
(एक समस्या - राष्ट्र भक्ति )
कुंडलिया छंद
बैठी हिमगिरी गोद में चेटी परम प्रवीण,
बेटी चौमुख बाकी जय भारती अदीन|
जय भारती अदीन, अन्नपूर्णा सुखदाई,
पुत्रवत्सल का पाठ विश्वमोहिनी मात सवाई
करिए ऐसी कृपा तुझसे नहिं छेटी,
मम “जीवन का पाठ” सफल कर
बैठी बैठी ||१||
शार्दूल विक्रीडित छंद
जाके देखतही सुरेंद्रनगरी की लालसा
भूलती,
जाको पाकर है मनेप्सित सभी वांछा न
संचालती |
जासे प्रेमकिये अनन्य मनसे कीर्ति
सुविश्रांती देगी,
“जीवन का
सुपाठ”
सिखलाओ शोभावती भारती ||२||
जाकी भक्ति किये समस्त सुरभी संतुष्ट
होती सदा,
जाके सेवन से असंख्य जनता की होय
नष्टपदा|
जाके मार्ग की अनेक कणीका वेदार्थ देती
दिखा,
सो ही “जीवन का सुपाठ” जननी देगी
सोतुं को सिखा ||३||
दोहा
पुत्रवत्सला जननि से गाँठ नेह की गाँठ,
निज कर्तव्य संभारि के रट “जीवन का
पाठ”||
षतपदी छंद
भूमंडल सिरमौर ! अन्नपूर्णा ! वसुधारा !
कल्प विटप की जननि ! रत्न्गर्भी !
सुखसारा !
महादेवता द्वारपाल तेरे बलशाली,
पुत्रवत्सला ! रामकृष्ण, अर्जुन सुन बाली |
शंकर, वायुकुमार ने घाट घाट सेवा दई,
उन “जीवन के पाठ” को शोभा
नूतन भई || ४||
मनहरण छंद
संकट की गाँठ गाँठ की मिठास चाट चाट ,
घांट घांट जाय जाय ज्योति को जगाईये |
हाय हाय छांडी छांडी खान पान को बिहाय,
भाटवन भारती की चासनी चखाईये |
कायरों को डाट डाट जरिये ना बिना काट,
प्रेम की मिठास माट माट में मिलाईये |
जीवन के साथ साल आठ आठ गुणे साधि,
आजीवन “जीवन का पाठ” पढ़ जाईये ||५||
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